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Raksha Bandhan Special: Lata Mangeshkar अपने भाई Dilip Kumar से थीं बेहद नाराज,13 साल तक नहीं बांधी राखी…

When Lata Mangeshkar Dilip Kumar Did Not Speak: दिवंगत सिंगर लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वो आज भी सभी के दिलों में बसती हैं. लता मंगेशकर ने अपने गानें से हमेशा लोगों के दिलों को जीता हैं. सिंगर लता मंगेशकर अभिनेता दिलीप कुमार (Dilip Kumar) को अपना भाई मानती थीं. उन्हें राखी भी बांधती थी. लेकिन एक बार इन दोनों में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी वजह से लता मंगेशकर ने अपने भाई दिलीप कुमार से 13 साल तक बात नहीं की. इतना ही नही उन्होंने दिलीप को पूरे 13 साल (13 Years) तक राखी भी नही बांधी थी.

Lata Mangeshkar Dilip Kumar
Lata Mangeshkar and Dilip Kumar

दिवंगत सिंगर लता मंगेशकर और दिलीप कुमार आज दोनों ही इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. लेकिन लोग आज भी इनको अपने दिल में बसा कर रखते हैं. लता मंगेशेकर और दिलीप कुमार में बहुत प्यार था. लता मंगेशेकर के इंडस्ट्री में आने के बाद दिलीप कुमार को राखी बांधने लगी थीं. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ, जिसका लता मंगेशकर को बहुत बुरा लगा, और उन्होंने 13 साल तक दिलीप कुमार से बात नहीं की थीं. क्या थी वजह आइये बताते हैं…

मुंबई ट्रेन में हुई Lata Mangeshkar Dilip Kumar की मुलाकात

दरअसल, लता मंगेशेकर (Lata Mangeshkar) दिलीप कुमार (Dilip Kumar) और संगीतकार अनिल विश्वास (Anil Biswas) के साथ एक दिन मुंबई की ट्रेन में सफर कर रही थीं. उस वक्त दोनों एक दूसरे को सही से जानते भी नहीं थे. संगीतकार अनिल विश्वास (Anil Biswas) ने दिलीप कुमार से लता मंगेशकर के बारे में बताते हुए कहा कि यह लड़की बहुत अच्छा गाना गाती है.

जिसके बाद दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर से उनका नाम पूछा. नाम सुने के बाद दिलीप कुमार पुछते हैं क्या मराठी है. इसके बाद संगीतकार अनिल विश्वास ने कहा कि हां मराठी है. दिलीप कुमार ने कहा कि मराठी लोगों की उर्दू दाल-चावल के जैसी होती है. दिलीप कुमार का कहने का मतलब था कि वो शब्दों को सही से उच्चारण नहीं कर पाते है.

दिलीप कुमार की इस बात से बेहद नाराज थी लता मंगेशकर

लता मंगेशकर और दिलीप कुमार दोनों को डायरेक्ट ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) की फिल्म ‘मुसाफिर’ (Musafir) में एक गाना साथ में गाना था. वो गाना था ‘लागी नाही छूटे..(Laagi Nahi Chhute) इसके बाद गाना की रिकार्डिंग शुरू हुई और लता मंगेशकर ने शानदार ढंग से गाना को रिकॉर्ड किया लेकिन दिलीप कुमार लता जी के आगे अच्छा नहीं गा पाये. उसके बाद दिलीप कुमार ने उन टिप्पणी करते हुए कहा कि मराठियों की उर्दू दाल चावल जैसी होती है.

लता मंगेशकर को इस बात का इतना बुरा लगा कि उन्होंने उसी वक्त से दिलीप  से 13 साल उनसे बात नहीं की थीं. लत्ता जी दिलीप से इतनी नाराज हो गई थी कि उन्होंने उर्दू भाषा सिखने का फैसला किया.

आखिर कैसे खत्म हुआ Lata Mangeshkar Dilip Kumar का गुस्सा..

लंता मंगेशकर और दिलीप कुमार के लिए फिर एक ऐसा वक्त आया, जब अगस्त 1970 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लेखक खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) ने अपने संपादन में निकलने वाली एक पत्रिका ‘द इलस्ट्रेडेट विकली ऑफ इंडिया'(The Illustrated Weekly of India) में इन दोनों हस्तियों को एक साथ लाने का सोचा.

लेखक खुशवंत सिंह ने सीनियर पत्रकार राजू भारतन (Raju Bharatan) को लता मंगेशकर और दिलीप कुमार को घर लाने की जिम्मेदारी दी थी.

एक आइडिया Lata Mangeshkar Dilip Kumar को लाया एक साथ

बता दें कि ये खुशवंत सिंह की पहले से ही एक सोची समझी साजिश थी कि लता मंगेशकर दिलीप कुमार को राखी बांधेंगी और उस फोटो को पत्रिका के कवर पेज पर डाला जाएगा. लेखक खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) ने इस फोटो को ‘हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई’ शीर्षक के नाम से छापा.

इस फोटो में लता मंगेशकर और दिलीप कुमार एक साथ नजर आए थें. लेकिन वह फोटो सिर्फ दिखावे के लिए नहीं रही. बाद में जब दोनों की बात हुई तो सारी प्रॉब्लम्स दूर हो गई. उसके बाद लता मंगेशकर फिर से दिलीप कुमार को राखी बांधने लगी थीं. दोनों ने अपने इस भाई-बहन के प्यारे से बंधन को आखिरी वक्त तक निभाया. लंता मंगेशकर और दीपिक कुमार दोनों ने दिल से भाई-बहन की तरह एक-दूसरे को अपनाया और पूरी जिन्दगी भाई-बहन के इस प्यारे से रिश्ते के बंधन मे बंध गए.

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